बीता हुआ कल

बीता हुआ कल

बुद्ध भगवान एक गाँव में उपदेश दे रहे थे. उन्होंने कहा कि हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए. क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करने वाला दूसरों को जलाएगा तथा खुद भी जल जाएगा.
सभा में सभी शांति से बुद्ध की वाणी सून रहे थे, लेकिन वहाँ स्वभाव से ही अतिक्रोधी एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था जिसे ये सारी बातें बेतुकी लग रही थी. वह कुछ देर ये सब सुनता रहा फिर अचानक ही आग- बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो.... बड़ी-बड़ी बाते करना यही तुम्हारा काम. है। तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो. तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखतीं
ऐसे कई कटु वचनों सुनकर भी बुद्ध शांत रहे. अपनी बातों से ना तो वह दुखी हुए, ना ही कोई प्रतिक्रिया
की; यह देखकर वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उसने बुद्ध के सामने बहुत कुछ बुरा भला कहकर वहाँ से चला गया।
अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो उसे अपने बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलने लगा और वह उन्हें ढूंढते हुए उसी स्थान पर पहुंचा, पर बुद्ध कहाँ मिलते वह तो अपने शिष्यों के साथ पास वाले एक अन्य गाँव निकल चुके थे.
व्यक्ति ने बुद्ध के बारे में लोगों से पुछा और ढूंढते- ढूंढते जहाँ बुद्ध प्रवचन दे रहे थे वहाँ पहुँच गया। उन्हें देखते ही वह उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, “मुझे क्षमा कीजिए प्रभु !
बुद्ध ने पूछा: कौन हो भाई ? तुम्हें क्या हुआ है ? क्यों क्षमा मांग रहे हो ?”
उसने कहा: क्या आप भूल गए। .. मैं वही हूँ जिसने कल आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था. मैं शर्मिन्दा हूँ. मैं मेरे दुष्ट आचरण की क्षमायाचना करने आया हूँ.
भगवान बुद्ध ने प्रेम पूर्वक कहा: बीता हुआ कल तो मैं वहीं छोड़कर आया गया और तुम अभी भी वहीं अटके हुए हो. तुम्हें अपनी गलती का आभास हो गया, तुमने पश्चाताप कर लिया; तुम निर्मल हो चुके हो; अब तुम आज में प्रवेश करो. बुरी बाते तथा बुरी घटनाएँ याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते है. बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो.
उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया. उसने भगवान बुद्ध के चरणों में पड़कर क्रोध त्याग का तथा क्षमाशीलता का संकल्प लिया; बुद्ध ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा. उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया, और उसके जीवन में सत्य, प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी.
मित्रों , बहुत बार हम भूत में की गयी किसी गलती के बारे में सोच कर बार-बार दुखी होते और खुद को कोसते हैं। हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, गलती का बोध हो जाने पर हमें उसे कभी ना दोहराने का संकल्प लेना चाहिए और एक नई ऊर्जा के साथ वर्तमान को सुदृढ़ बनाना चाहिए।
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Note: - आपके साथ साझा कि गई ये प्रेरणात्मक कहानी (inspirational story) मेरी स्वयं कि कृति नहीं हैमैंने ये कहानी बहुत बार पढ़ी है और सुनी है और मैंने यहाँ पर केवल इसका हिन्दी रूपांतरण प्रस्तुत किया है.

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