Power of the law of attaction

आकर्षण के सिद्धांत कि शक्ति
(The Power of law of Attraction)

एक लेख जो आकर्षण के सिद्धांत पर आपका विश्वास और बढ़ा देगा

अलादीन अपने जादुई चिराग को जब भी रगड़ कर साफ करता , एक जिन्न प्रकट होकर कहता है - ' क्या हुक्म है मेरे आका ?' अरब की इस लोककथा को कोरी कहानी नहीं मानना चाहिए। बल्कि इसमें मनुष्य की भीतरी शक्ति और सृष्टि के चुंबकीय आकर्षण सिद्धांत का एक उदाहरण छिपा है। इस आकर्षण सिद्धांत के अनुसार इस सृष्टि का कर्त्ता मनुष्य है। इसलिए वह जो कुछ भी चाहता है , उसे अंजाम दे सकता है।

तो क्या हमारे जीवन में भाग्य या नियति की कोई भूमिका नहीं ? अक्सर कहा जाता है कि भाग्य ही सर्वत्र फलता है , विद्या और पौरुष नहीं। इस बारे में उदाहरण दिया जाता है समुद्र मंथन का , जब विष्णु को लक्ष्मी मिली थीं और शंकर को विष। कहते हैं कि विधाता ने जो हमारी भाग्य में लिख दिया है , उसे कोई मिटा नहीं सकता। जीवन भर कर्म करने पर भी मिलता वही है जो हमारी किस्मत में है।

ऐसी बातें आम एक इंसान को कर्म से विमुख करती हैं। इसके उलट स्वामी रामतीर्थ की यह बात हम में आशा का संचार करती है कि मनुष्य तो अपने भाग्य का स्वयं ही विधाता है। एक शायर ने तकदीर और किस्मत में अंतर करते हुए कहा है : ' वही कानूने फितरत है , जिसे तकदीर कहते हैं / जिसे किस्मत समझते हैं , वह तदबीरों का हासिल है।

कोई चाहे हमारी कैसी भी तकदीर बताए पर सच यही है कि इंसान खुद अपनी किस्मत बनाता है। वह जो कुछ पाता है , उसे वह अपने कार्यों और विचारों से पाता है। इसी बात को आर . बायर ने आकर्षण का सिद्धांत कहा है। उन्होंने इस सिद्धांत की व्याख्या अपनी किताब ' सीक्रेट ' में की है। आकर्षण के सिद्धांत के अनुसार इस सृष्टि में मनुष्य सब से शक्तिशाली चुंबक है। मनुष्य की शक्ति उसके विचारों से ही पूरी सृष्टि में प्रसारित होती है। इस नियम के अनुसार मानव एक प्रसारण केंद्र है। वह निरंतर विचार रूपी तरंगें प्रसारित करता रहता है। इन तरंगों का महत्व यह है कि इनसे उसके आने वाले जीवन की भी एक रूपरेखा बनती है। जिस भी भाव पर उसका विचार केंद्रित होगा , वही साकार रूप में सामने आएगा। आकर्षण का नियम यह भी कहता है कि जब तक हम किसी एक विषय पर विचार केंद्रित नहीं करेंगे , खुद हमारे जीवन में कुछ भी घटित नहीं होगा।

किसी एक विचार पर खुद को केंद्रित करते हुए हम चाहें तो अच्छा या बुरा , कैसा भी काम कर सकते हैं। यदि हमारे भावों की तरंगें तामसिक हैं तो हम वे कार्य करेंगे जो समाज और व्यवस्था के विरोधी होते हैं। यदि हम अच्छे कार्य करना चाहते हैं , तो हमें इन भाव - तरंगों की दिशा बदलनी होगी। 

यह हमें ही तय करना है कि हम वास्तव में चाहते क्या हैं ? यह स्पष्ट होते ही हम व्यवस्था के सब से बड़े नियमों में से एक ' आकर्षण के नियम ' पर चलना शुरू कर देते हैं।

पर कभी - कभी ऐसा भी होता है कि हमें मनचाहा लक्ष्य नहीं मिलता। इसकी क्या वजह है

इसका कारण यह है कि हम जो नहीं चाहते हैं उसके बारे में ज्यादा सोचते हैं। आकर्षण का नियम एक तरह से जिन्न की तरह आज्ञाकारी भी है। वह हमें केवल वही देता है जो हम सोचते हैं। आकर्षण का नियम कहता है कि हर समय अच्छा ही सोचो क्योंकि आपके विचार ही कभी कभी साकार होकर सामने खड़े होंगे। इसलिए जरूरी है कि नकारात्मक भावों को अपने दिल - दिमाग से निकाल बाहर फेंको।

मनचाहा नतीजा देने वाले अपने भीतर के जिन्न के सामने निश्चित लक्ष्य को रखते हुए हमें मन , वचन और कर्म से ऐसा व्यवहार करना होगा जैसे वह इच्छा पूरी हो गई हो। किसी लक्ष्य को हासिल करने में आशा का बड़ा महत्व है। इसीलिए केवल उन्हीं बातों की आशा करो जो आप पूरी होते देखना चाहते हैं। जो नहीं चाहिए उन्हें पूरी तरह भुला देना ही उचित है , अन्यथा वे बातें बीच में आकर लक्ष्य में बाधा डाल सकती हैं। इस प्रकार जादुई चिराग का जिन्न हम खुद ही बन सकते हैं।
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-Sagar Singh Panwar 

Note: आकर्षण के इस सिद्धान्त को और अच्छे से practical उद्धाहरण के साथ समझने के लिए आकर्षण का सिद्धान्त  और आकर्षण का सिद्धांत- सोच बनती है हकीक़त पढ़े।

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